मित्र| Dost| Friend

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मन्ज़िल मिल जाएगी
फिर साथ बैठेंगे,
हाथ मे किताब लेकर
जो मैंने लिखी है...✍️
अपने जीवन की घटनाओं पर आधारित
जिसमें सँजोया है तेरी बातों को
लिखा है तुम्हारे लिए उमड़ते जज़्बातों को
लिखा है तुम्हारे बिन बेचैनी को
लिखा है बरसों समान गुजरे पल को
लिखा है तेरी नाराज़गी में हालत मेरी
बुना है शब्दों में शिकायत तेरी
जो मैंने कभी किसी से कहा नहीं
लेकिन तुमसे हमेशा बताना चाहा
लेकिन पता नहीं क्यों कभी कह नहीं पाया
उनको भी सजाया मैंने पन्नों पर
तुम्हारे लिए सारा फ़र्ज़ लिखा है
दोस्ती का अपना कर्ज़ लिखा है
अपने हर तकलीफ़ को शब्दों में
सँजोया है तुम्हें सामने रखकर
बहुत सुकून मिला बेचैनी कहकर
तुम्हारी याद लिखी है ग़ज़लों में
जिसे सुनाया है अक्सर महफ़िलों में
तुम्हें लिखा है हर गीत में
लिखा है तुम्हें अपने सच्चे मीत में
लिखा है तेरा मेरा वो पवित्र रिश्ता
जो हर युग में व्याप्त है
संक्षिप्त है किंतु सीमित नहीं
विशेष है पर किसी से प्रेरित नहीं
लिखा है तुम्हारे एहसानों को
जिनसे मुझे जीने का सलीका मिला
तुमसे मिलकर
फिर से रिश्तों में मुझे भरोसा मिला
तुम्हारी उन्नति जैसे मेरी पहचान बन गयी
जब भी लिया नाम तेरा मेरी शान बन गयी
मेरे हृदय को प्रिय और एक ख़्वाब हो मित्र
सच में तुम बहुत लाज़वाब हो मित्र...✍️

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