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ग़ज़ल
जब तक स्पर्श नहीं भ्रमर का
पुष्प नहीं खिल पाता है।
सभी मिथ्या तब तक हैं प्रिय
जब तक भ्रम नहीं मिट पाता है।।
सदभाव का प्रयास किये बिना
कभी द्वेष नहीं हट पाता है।।
जो अपराध कभी हुआ न हमसे
उसका दण्ड भी हमको मिल जाता है।
एक रोग लगा है तुमसे मिलकर
जिसका दवा नहीं मिल पाता है।।
कैसे तुम बिन तय करें रास्ता
गुरु अकेला नहीं चल पाता है।
मैंने जब भी चाहा तुम्हें कुछ कहना
तेरा मन मुझसे नहीं मिल पाता है।।
जब चाहा हिय पीर बतलाना
तुम्हें भाव कुछ समझ नहीं आता है।
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