बचपन हिंदी कविता : दोस्तों, हमारे जीवन में ऐसी घटनाएँ अक्सर घटती हैं जिसे हम भूल नहीं पाते हैं। हम सभी को जब अकेलापन महसूस करते हैं ,हमें बचपन याद आ जाता है। सभी यह सोचते हैं कि काश ! हम दोबारा से अपना बचपन जी पाते फिर से वही शरारतें कर पाते, फिर से बारिश में कागज के नाव चलाते। परन्तु ऐसा कहाँ सम्भव हो सकता है। आज आपके साथ बचपन पर एक कविता साझा कर रहें हैं आशा है आपको पसंद आयेगा।
बचपन | gskidiary |
" बचपन "
हमें पीड़ा हो और रो न पाएँनींद आये पर सो न पाएँ
जीवन शूलमय बस हो जाता है
ऐसे में बस बचपन याद आ जाता है।
वो माँ के आँचल में आंसू पोंछ लेना
पिता से पसंद के खिलौने मांग लेना
सबसे खुलकर हर बात साझा करना
मित्रों को हीर स्वयं को रांझा करना
न चिंता भविष्य की न भय जीने मरने का
निर्भीक निडर रहा सदा वचनबद्ध को करने का
अब तो हर क्षण सांसों से वियोग भय हो जाता है
ऐसे में बस बचपन याद आ जाता है।।
मित्रों का था साथ हरदम
अच्छा बुरा सब ज्ञान मिला
जब जब रहा उदास गुरु
उनके सँग हंसी का पुष्प खिला
अब तो सब उत्तरदायी हो गए
परिवार और जीवन के कर्मों का
भागमभाग के जीवन पथ पर
नहीं याद रहा मैत्री धर्मों का
अब जो भी मित्र बने जीवन में
सबको हमसे काम रहा
उनका स्वार्थ हुआ पूरा ज्यों
नहीं याद उन्हें मेरा नाम रहा
अब भीड़ नहीं भाता हृदय
एकांत पसंद ही आता है
ऐसे में बस बचपन याद आ जाता है।
मैं टूटा जब जब भी
स्वयं से सदा सम्हलता था
ठोकर कई लगे हृदय भाव को
पर विश्वास सदा ही करता था
अब तो चूर चूर हो बिखर गया हुँ
न जाने कितने टुकड़ों में किधर गया हुँ
हे पारस हृदयी अब दूर रहो तुम
अपने खोखले सुख में भरपूर रहो तुम
यदि सम्बन्ध नहीं शुद्ध निर्वाह कर सकते
यदि किसी की नहीं परवाह कर सकते
तो जाओ पर्वत-शिखरों पर
बन शिलाखण्ड निवास करो
जीव प्रेम और वास त्याग कर
मध्य पारस में प्रवास करो
यूँ तो मेरा कोई शत्रु नहीं
हर कोई मित्र बन मिलता है
पर विश्वास को मेरे आघात सदा
उपहार स्वरूप में मिलता है
ऐसे में भाव सभी चोटिल घायल हो जाता है
ऐसे में बस बचपन याद आ जाता है।।
0 Comments
यदि आप हमारे साथ कुछ साझा करना चाहते हैं तो बेझिझक हमें लिखें | सम्भव हुआ तो हम आपके लेख भी अपने ब्लॉग पर प्रकाशित करेंगे |