Mithi-mithi bato se| मीठी मीठी बातों से

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Mithi-mithi bato se| gskidiary

 

मीठी मीठी बातों से

मन को बहलाते हैं

 धीरे धीरे न जाने 

कब दिल में बस जाते हैं


फिर एक दिन न जाने क्यों

हो जाती उनसे ज़ुदाई है

फिर मिलती है बेचैनी

और मिलती बेदर्द तन्हाई है


चोट हृदय पर खाते-खाते

बस पीर ही पीर पाई है

झरनों से अधिक जलधारा

निशि-दिन आँखों से बहाई है


हरे भरे बागों में अब हमने जाना छोड़ दिया

पवन संग हमने मुस्काना छोड़ दिया

जाते तो हैं छत पर अब भी

पर चाँद से बतियाना छोड़ दिया


हरियाली भी बंजर सी लगती है

सावन भी अनल वर्षा करती है

सुबह सवेरे ओस की बूँदें

शूल सी पाँव में चुभती है


शब्दों को अधरों पर सजानी नहीं है

गीत कोई भी आज से गानी नहीं है

गगन तले बैठ कर चाँदनी में

वेदना हृदय की सुनानी नहीं है


दर्पण में चेहरा अब पसन्द आता नहीं

अब बालों को मुझसे सँवारा जाता नहीं

कभी भाती थी 'गुरु' महक सदा ही मुझे

अब कपड़ों पर इत्र कभी लगाता नहीं...✍️

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