गज़ल | Gazal

 ग़ज़ल

 महफ़िलों में भी ग़म का खज़ाना न गया।

अश्क़ आँखों का फिर से रुलाना न गया।।


दर्द अपनों ने दिया उस को सह लिया हँसकर।

ज़ख्म दिल में फूलों सा खिलाना न गया।।


उसकी यादों को हमने भी सँजोया इस कदर।

उन लम्हों को इस दिल से भुलाना न गया।।


चन्द ख़ुशियों का क़तरा जो था कहीं दिल में।

उसको भी खुले दिल से सब पे लुटाना न गया।


आह! से भरी जिंदगी भले दुःख की हो सारी।

ख़्वाब जीने का मगर दिल को सजाना न गया।।


रक्खी होंठों में सदा मुस्कुराहटें खिलाकर।

भीगे अश्क़ों से दर्द को छिपाना न गया।।


प्यार की बातें ज़ुबाँ से की जितनी ज़ाहिर हमने।

उन लफ्ज़ों को गुरु दुश्मनों से भी निभाना न गया।।

Post a Comment

0 Comments