गज़ल
किस्मत के अठखेलियों की अदा नहीं मालूम।
सबके हाथ उठे दुआ को पर ख़ुदा नहीं मालूम।।
जो भी मिला सफ़र में अपना कह दिया।
कल तक कौन किससे होगा ज़ुदा नहीं मालूम।।
जल रखा ख़ुद को उसकी रौशनी के ख़ातिर।
होगा क्या अंजाम सजा नहीं मालूम।।
बड़ी बेरुख़ी से सरे बाज़ार किया रुसवा।
पूछा वजह तो कहा ख़ता नहीं मालूम...✍️
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