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Gazal|गज़ल |
मेरे दर्द-ओ-तक़लीफ की समस्याएँ समझ लेता है
गुरु बस तू है जो मेरा प्यार समझ लेता है।
मेरी बेचैनी मेरे उलझनों की दिल में उठती कसक
एक वही है जो बार बार समझ लेता है।
करके तबाह ख़ुद को, यारी में गुरु
मिली जीत को आदमी, हार समझ लेता है।
कुछ यूँ ज़ुदा, अंदाज़-ए-अल्फ़ाज़ है मेरा
अक्सर गलत मुझे मेरा, हर रिश्तेदार समझ लेता है।
जिससे इक़रार था वो इंकार कर गया
जिससे इन्कार है वही इक़रार समझ लेता है।
जिसके ख़ातिर रहो हमेशा मौज़ूद गुरु
वो आदमी फ़ुरसतिया, बेकार समझ लेता है।
जिसकी हर शिक़ायत तुम हँसके हुक़्म सा ले लो
वो तुम्हें बेवकूफ़ और गँवार समझ लेता है।
वहम इस क़दर पाल रखा है ख़ुद में बशर
कि दर्द उनका सिर्फ़ है, बाकी बेकार समझ लेता है।
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