तुम | Tum

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                                       *तुम*

तुम प्रभात की ऊर्जा सी मन में
बहती निश्छल नस नस में
तुम बिखरी सारे भावों की
समेटने वाली आशा हो
मैं जीवन पथ पर कहीं चलूं
तुम मंजिल की अभिलाषा हो
सात सुरों की लय लिए तुम
मेरी गीत ग़ज़ल और भाषा हो।

तुम खिलती कलियों सी
नवयौवन से सज्जित
फूलों का रंग बिखेर रहे
तुमसे महके जीवन उपवन
तुमसे दूर अंधेर रहे।।

तुम शांत उत्कृष्ट छवि दिखती हो
जीवन अतिसुन्दर लिखती हो
तुम अलंकार से सुसज्जित
तुम ही सुसँस्कृति लगती हो

तुम प्रेम की अमृत मधुशाला
हृदय प्रिय गीतों की माला
जीवन के भावों को समेटे
तुम हो अनुपम सन्दर्भशाला

मृत जीवन में प्राण भरती
तुम सोम सुधा की सरिता हो
प्रेरणा और नव ज्ञान लिए
तुम मेरी सुंदर कविता हो
तुम मेरी सुंदर कविता हो।।।

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