सब बदलते देखा | Sab Badalte Dekha

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समय के साथ सब बदलते देखा।
मुरझा गए जिन्हें मैने ख़िलते देखा।।
औरों की फ़िक्र से जब लिया फ़ुर्सत।
ख़ुद का हालात बद से बदतर देखा।।

आंखों के समंदर में कई ख़्वाब डूबे।
पर मुस्कराता हुआ अधर रहा।।
गैरों से मरहम मिले।
और अपनों के हाथ ख़ंजर रहा।।

मत पूछो गुरु, मैंने क्या किस कदर देखा।
सजी महफ़िलों में तन्हा सारा शहर देखा।।
न रिश्तों की कद्र न जज़्बातों का फिक्र देखा।
चालाकियों से भरा यहाँ हर सफऱ देखा।।

 

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