ज़िन्दगी | Zindagi

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 ज़िन्दगी


मेरी ख़्वाहिशें हैं शरबती , पर नसीब में कुछ और है।
सब लुट गया दिल टुट गया, पर मुस्कराहटों का दौर है।।
मैं भटक गया था कहीं, फिर लौट के घर आ गया।
मन्ज़िले तो थीं मगर, चला रास्ता कोई और है।।
रब मेरी नादानियों की, गुस्ताखियां सब माफ़ हों।
मैं नहीं था बुरा कभी, गुरु दिल तेरा भी साफ़ हो।।
शायद सब भूल रहा जो संग मेरे था हुआ।
नफ़रत लिए जीते हैं जो वो लोग कोई और हैं।।
अब दोस्तों की पनाह में हैं शायद सुकूँ मिल जाएगा।
फिर से जीने को शायद, वजह कोई मिल जाएगा ।।
चलो गुरु अब लौटकर कुछ कर्ज़ मिटाने चलें।
ये दिल्लगी ये दोस्ती सब, छोड़ हम दीवाने चलें।।
ये सांस तो उधार में है, कच्ची इसकी डोर है।
बेवफ़ा है जिंदगी , कहाँ इसका कोई ठौर है।।

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