फुर्सत के चंद पल जो इस अन्तराल में मिले ।
कुछ कोरे पन्नों पर दिल के फिर जज्बात खिले ।।
कुछ यादें पुरानी भी उभरी कुछ बातों से आंख फिर भर आया आज फिर बेचैन हुई ही थी शाम मेरी आज फिर याद तू बहुत आया ।।
न कह पाऊँ न लिख पाऊं बस धुआं धुआं सा रहता हूँ ।
मै बादल अवांरा सा हवा के संग संग बहता हूँ ।।
मुझको पढना प्रत्यक्ष जैसे और स्वप्न सा बिसरा देना ।
गर याद कभी आये फुर्सत में , तो मुस्कान जरा सजा लेना ।।
@गुरु
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