My love-gskidiary |
प्रेम मेरा
हो सकता है न कह पाऊँ,
न जता पाऊँ कभी प्रेम मेरा
पर तुम पर जब नजरें ठहरें,
एहसास समझ जाना तुम....
आऊँ रसोईं में कुछ करके बहाना
लगी है प्यास या चाहूँ कुछ खाना
तुम्हें देख यदि मैं मुस्काऊँ
मेरी चाह समझ जाना तुम.....
जब लौट के घर कुछ लेकर आऊँ
फिर चुपके से तुम्हें दिखाऊँ
जैसे हो कोई विशेष उपहार
मेरा वो व्यवहार समझ जाना तुम....
जब मना करूँ दोस्तों संग जाने को
और तुम्हें ले जाऊँ गोलगप्पे खाने को
ऐसे क्षणिक निर्णय और अभिलाषा
की मूक भाषा समझ जाना तुम....
कभी कोई गलती हो दोनों में
और क्रोधित मन हो तुम पर चिल्लाने को
पर आकर लग जाऊँ गले तुम्हारे
तो उस आलिंगन को समझ जाना तुम....
मेरी स्मृति तनिक कमजोर है
बहुत कुछ शीघ्र ही भूल जाता हूँ
ऐसे में यदि दिवस पहली मिलन की
या जन्मदिन तुम्हारा भूल जाऊँ
तो क्षमा करके ऐसी स्थिति में
मेरी स्थिति समझ जाना तुम...
जब एकाकी में हो बेचैन
यांत्रिक सम्पर्क करूँ तुम्हें
क्रोधितवश यदि कहूँ कहाँ हो
अभी के अभी तुरन्त घर आओ
तो इन शब्दों में मेरी तड़प को
न जता पाऊँ कभी प्रेम मेरा
पर तुम पर जब नजरें ठहरें,
एहसास समझ जाना तुम....
आऊँ रसोईं में कुछ करके बहाना
लगी है प्यास या चाहूँ कुछ खाना
तुम्हें देख यदि मैं मुस्काऊँ
मेरी चाह समझ जाना तुम.....
जब लौट के घर कुछ लेकर आऊँ
फिर चुपके से तुम्हें दिखाऊँ
जैसे हो कोई विशेष उपहार
मेरा वो व्यवहार समझ जाना तुम....
जब मना करूँ दोस्तों संग जाने को
और तुम्हें ले जाऊँ गोलगप्पे खाने को
ऐसे क्षणिक निर्णय और अभिलाषा
की मूक भाषा समझ जाना तुम....
कभी कोई गलती हो दोनों में
और क्रोधित मन हो तुम पर चिल्लाने को
पर आकर लग जाऊँ गले तुम्हारे
तो उस आलिंगन को समझ जाना तुम....
मेरी स्मृति तनिक कमजोर है
बहुत कुछ शीघ्र ही भूल जाता हूँ
ऐसे में यदि दिवस पहली मिलन की
या जन्मदिन तुम्हारा भूल जाऊँ
तो क्षमा करके ऐसी स्थिति में
मेरी स्थिति समझ जाना तुम...
जब एकाकी में हो बेचैन
यांत्रिक सम्पर्क करूँ तुम्हें
क्रोधितवश यदि कहूँ कहाँ हो
अभी के अभी तुरन्त घर आओ
तो इन शब्दों में मेरी तड़प को
प्रिय समझ जाना तुम....
यदि झुंझलाकर कभी कहूँ तेज से
नहीं मिलती तुम्हारी रखी चीज
तो तुम पर है मेरी कितनी निर्भरता
ये बात समझ जाना तुम....
शायद तुमसे हर दुःख चिंता
साझा न कर पाऊँ
शायद नम हो आंखें मेरी
और तुमसे छिपा जाऊँ
पर बच्चों सा आकर तुमसे
यदि कभी मैं लिपट जाऊँ
तो मेरे सीने की धधकती ज्वाला
प्रियसी समझ जाना तुम...
हो सकता है न कह पाऊँ,
न जता पाऊँ कभी प्रेम मेरा
तो क्या समझ जाओगे
मेरा अगाढ़ प्रेम....
की एक दिन बहा देना चाहता हूँ
अपने हृदय की उदासी सारी
तुम्हारे कँधे सिर रख कर
और सुकूँ से सोना चाहता हूँ
गुरु अपनी अंतिम इच्छा तक....✍️
यदि झुंझलाकर कभी कहूँ तेज से
नहीं मिलती तुम्हारी रखी चीज
तो तुम पर है मेरी कितनी निर्भरता
ये बात समझ जाना तुम....
शायद तुमसे हर दुःख चिंता
साझा न कर पाऊँ
शायद नम हो आंखें मेरी
और तुमसे छिपा जाऊँ
पर बच्चों सा आकर तुमसे
यदि कभी मैं लिपट जाऊँ
तो मेरे सीने की धधकती ज्वाला
प्रियसी समझ जाना तुम...
हो सकता है न कह पाऊँ,
न जता पाऊँ कभी प्रेम मेरा
तो क्या समझ जाओगे
मेरा अगाढ़ प्रेम....
की एक दिन बहा देना चाहता हूँ
अपने हृदय की उदासी सारी
तुम्हारे कँधे सिर रख कर
और सुकूँ से सोना चाहता हूँ
गुरु अपनी अंतिम इच्छा तक....✍️
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