प्रियवर| gskidiary |
प्रियवर
जब पहली बार मिले थे,
दिल अपने यार खिले थे।
हर बात तुम्हारा सच्चा लगता था,
तुम बिन न कुछ अच्छा लगता था।।
कुछ समय बाद फिर पल आया था
कितना प्यारा द्वार सजाया था
संग फेरे सात लिए थे हमने
देखे थे संग में कितने सपने
कितनी ख़ुशहाल जवानी थी
हर घड़ियाँ अपनी दीवानी थी
सब कुछ अपने हक़ में था
ये घर जैसे कोई स्वर्ग में था
इतनी जल्दी ख़त्म सफर होगा
नहीं तनिक गुँजाइश शक़ में था
यूँ दस बरस साथ बिताए थे
मेरी कितनी परवाह जताए थे
मैं अभागा कुछ जान न पाया
प्रेम को तेरे पहचान न पाया
मैं बे-ख़्याल लापरवाह रहा
हाय मैं तेरा गुनाहगार रहा
दो वर्ष तक पीड़ा झेली तुमने
एक शब्द कभी न बोली तुमने
कभी नाराज नहीं हुए हम पर
अब रोता हूँ अपने करम पर
तुमने कैसे सहन किया होगा
मेरी अवहेलना मेरा रूखापन
कर्क से अधिक पीड़ादायक
शायद तेरा था एकाकीपन
जब थी आवश्यकता मेरे साथ की
मैं अपनी दुनिया में था बेकार की
दो बातें प्यार की करता तुमसे
कुछ यादें साझा करता तुमसे
तुम शायद रहते साथ मेरे
अभी हाथ में होते हाथ तेरे
यदि तुमने इच्छा न बोली होती
शायद आँखें हमने न खोली होती
वो पांच दिवस तुम्हें जो लिया अंक में
तब जाना हुआ राजा से रंक मैं
अब कैसे वापस लाऊँ तुझको,
तू मुझसे इतना दूर गया
मेरी जड़ता का तुमने प्रियवर
दण्ड मुझे भरपूर दिया
मैं निष्प्राण अब टूट रहा हूँ
मेरे प्राण क्यों मुझसे रूठ गया....✍️✍️
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