मुस्कराते रहे | Muskrate Rahe

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मुस्कराते रहे 

लोग मिलते रहे , बिछड़ते रहे।
कोई क्या जाने हम कैसे जीते रहे।।
कभी दोस्त बनकर कभी प्यार बनकर।
हम टूटकर यूं ही बिखरते रहे।।
किसी से कह न सके, दर्द सह न सके।
आँसू आंखों से मेरे बह न सके।।
हवाओं ने बिखेरा बहारों में मुझे।
पर दिखा न सहारा कहीं किनारों पे मुझे।।
राह से राहगीर सभी गुज़रते रहे।
हम बदहवास से बस तड़पते रहे।।
आया न कोई साथ देने मेरा।
मैं अकेला ही गुरु ठहरा रहा।।
हाल अपने दिलों का किसे बताते भला।
ज़ख्म अपने जहन का किसे दिखाते भला।।
सब देते मशवरा या उड़ा देते हंसी।
कोई समझता कहाँ किसी की बेबसी।।
आशाओं के गीत बस गुनगुनाते रहे।
हम रोते रहे और मुस्कराते रहे।।


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