भय बिन जीत नहीं होती
बिन प्रतिद्वंदी के प्रतियोगिता कैसी ?
बिन भाव के हृदय संयोगिता कैसी ?
तुम लक्ष्य नहीं पहचानोगे तो
कैसे साधोगे बाण ?
बिन लक्ष्य को जाने पग बढ़ाना
तुम्हारा जीवन व्यर्थ है पार्थ।
है पराजय का भय तभी
तुम अभ्यास दृढ़ता से कर पाओगे।
अन्यथा जीत के अहं में तुम
स्वयं पराजित हो जाआगे।
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