सिर्फ तुम 💟 |
सुनो,
दिन गुज़र गया है रात आ गयी है
सपनों में जाने से पहले कुछ कह दो
मेरी ख़्वाहिश रहती है
तुम कुछ बोल दिया करो
बेमतलब बेवजह
पर तुम न जाने क्यों
चुप सी रहती हो
शायद मुझसे प्रतियोगिता है
पर मेरे लिए तो सिर्फ तुम हो।
दिल की बातें
दिल मे रखकर
बोझ न बनाओ
यूँ ख़ामोशी को साथ लेकर
क्यों जा रही हो
अल्फ़ाज़ भी कहे तो उलझे से
सब कहा दिल का क्यों नहीं
हाँ ये सच है मेरे दोस्त बहुत हैं
पर मेरे लिए तो ख़ास तुम हो।
काश! हम आमने सामने होते
काश! तुमसे नज़रे मिला पाते
मैं भी तेरे आंखों में पढ़ पाता
तुम्हारे मन की अनकहीं बातें !!
कुछ भूली कुछ नई
कोई तारीफ कोई शिकायत
कुछ तो कहो तुम,
मैं बहुत व्यस्त ज़िन्दगी जीता हूँ
पर सबसे पहले सिर्फ तुम हो।
शायद तुमने बताना उचित न समझा हो
शायद तुम्हें लगा हो हम ख़ुद समझ जाएं
शायद सही वक़्त नही लगा
तुम्हें
उफ़ ये वक़्त का चक्रव्यूह
कितना मुश्किल सा हो गया है!!
मेरे वक़्त के सारे हालात क़ुबूल हैं
बस मेरे लिए तो सिर्फ तुम हो।।
मेरी दोस्ती ज्यादा अच्छी नहीं
न ही सबको समझ आती है
पर तुमने तो बरस बिताए हैं
तुम्हें तो लगभग सब पता है
फिर क्यों भरोसा मुश्किल सा है
फिर क्यों शक़ में दिल रहता है
वैसे तो दोस्ती की
बहुत परिभाषाएं हैं मेरी ज़िंदगी में
पर समुचित परिभाषा तुम हो
सिर्फ तुम हो....✍🏻✍🏻✍🏻
गौरव सिंह "गुरु"
0 Comments
यदि आप हमारे साथ कुछ साझा करना चाहते हैं तो बेझिझक हमें लिखें | सम्भव हुआ तो हम आपके लेख भी अपने ब्लॉग पर प्रकाशित करेंगे |