चाँद| Chand

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चाँद


झाँके मेघों की ओट से
वो बैठा आकाश पर।
देखता रहता है 'गुरु'
चाँद मुझको रात भर।।

रहता है मेरी खोज में
वो शामों-शहर।
मुझे किनारे बैठा देख
आता है पानी मे उतर।।

उसकी पीड़ा पता है,
समझते उसका हर जज़्बात हैं।
पर मैं चकोर तो नहीं
जो देखता सारी रात है

मैं सुनसान रातों को
अक्सर उससे बात करता हूँ।
उसे अच्छे से पता है
मैं सुकूँ तलाश करता हुँ।।

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