वो भी शायद मुझसे मिलना चाह रही होगी।
रोज नए सपने सजा रही होगी।।
मैं ग्वाला सा हो गया हूँ आज कल ।
वो भी कहीं उपले बना रही होगी।।
मैं तो गँवारों सा हो गया हूँ गुरु।
एकदम बेचारों सा हो गया हूँ गुरु।।
अब दिखता हूँ भैरो बाबा सा।
ये क्या सा क्या हो गया हूँ गुरु।।
वो ख़ूबसूरती में रोज़ निख़र रही होगी
न जाने कैसे कैसे सँवर रही होगी
उसके विचारों में रोज़ कविता बनती होगी
मेरा हाल मुझसे पहले बता रही होगी
बातें कुछ ऐसे ही किसी को सुना रही होगी
मेरा नाम न सही पर मेरे बारे में ही बता रही होगी
सबके सवालों का यही प्यारा ज़वाब है मेरा
ज़िन्दगी हक़ीकत सभी मिटा रही होगी
ख़्याल में कोई कहीं गुनगुना रही होगी
न जाने कौन अपना बता रही होगी।।
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