मैं व्यथित हूँ पर किससे कहूँ
व्यथा हर कोई समझ पायेगा नहीं।
इससे अच्छा है गुरु मौन ही रहूँ
सुनकर कोई पीड़ा मिटाएगा नहीं।।
है ईश्वर मेरा सब देखता यहाँ
कितनी पीड़ा मुझे होती कब कहाँ।
मैं परास्त हो रहा किन्तु मानूँगा पराजय नहीं
साँस अंतिम लड़ूँगा होगी विजय तो कहीं।।
है कामना यही प्रभु से मेरे
साँस राहों में कभी न टूटे मेरे।
अन्य के जीवन पर जिनसे हो असर
वो दायित्व मेरे न अधूरे रहें।।
आया हूँ जग में तो कुछ कर जाने दो
प्रभु मुझे भी तनिक सँवर जाने दो।।✍️
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