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किसी ने कभी समझा ही नहीं, बस मैं ही मैं गलत रहा।
दिल की बात दिल में रही, मैं बस चुप रहने लगा।।
ये चुप्पी बन ज्वालामुखी मुझे राख करने लगी।
घुटन जब असहन हुआ तो पन्नों पर लिखने लगा।।
जब भी बैठा लिखने गुरु, दिल से अपनी कविता कोई।
मेरे हृदय की पीड़ा हर शब्दावली में उभरने लगा।।
सरल शब्द लिखने लगा ,सब तक बात मेरी पहुंचे सही।
लोग कहें न फिर से गलत भय यही रहने लगा।।
सदा खुलकर हँसता हूँ रोता हूँ छिपके कभी कभी।
कोई मुझे समझा नहीं बस बात यही है चुभता रहा।।
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