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आपस के राग द्वेष मिटे
हृदय के सच में क्लेश मिटे
चलो ऐसे यार मनाएँ होली।
नन्हीं चिड़ियों का गुंजन हो
कोयल की प्यारी कुंजन हो
सूरज की लाली प्यारी हो
दिन जैसे एक सुकुमारी हो
प्रातः नीलकण्ठ का नृत्य बने
चलो ऐसे यार मनाएँ होली।।
जल वृक्ष संरक्षित कर पाएं
आँगन तुलसी से महकाएँ
प्रेम के पौध हृदय उग आएँ
खेतों में फसलें लहराएँ
सुँदर सजे प्रकृति की डोली
चलो ऐसे यार मनाएँ होली।।
हो नयनों में सुख चित्रण
टूटे सबके दुःख दर्पण
भूख बेबसी से न दिखे पीड़ित
ऊँच नीच का रहे न घिर्णित
हो मानवता हृदय बसाने वाली
चलो ऐसे यार मनाएँ होली।।
मण्डली हो सुंदर रसखान
गाएँ सब फगुआ गान
ढोल मंजीरे सुर छेड़े
हो गुलाल नभ को घेरे
पुष्प सुगन्ध और रंगों वाली
चलो ऐसे यार मनाएँ होली।।
शिष्टाचार वाली होली
पवित्र आलिंगन वाली होली
भेद भाव रहे न कोई
हो उत्सव बस ख़ुशियों वाली
चलो ऐसे यार मनाएँ होली।।
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