शरीर की रोम रोम निर्मित जिससे
सृष्टि की सुंदर रचना जिससे
ऋतुओं का है प्यार जिससे
उस अस्तित्व को भला क्या लिखूं।
मैं स्त्रीत्व को भला क्या लिखूं।।
जो माँ के रूप में ममता है
जिसमें अनन्त पीड़ा सहने की क्षमता है
जो सखी बन दर्द बंटाती है
जो पत्नी रूप प्रेम सिखाती है
उस नारीत्व को गुरु क्या लिखूं।
मैं स्त्रीत्व को भला क्या लिखूं।।
जो रिश्तों का मान सिखाती है
बहन रूप में कर्म बताती है
जिसमे सब गुण विद्यमान रहे
जो अपने हृदय सदा मेरा स्थान रखे
बोलो ऐसे सतीत्व को क्या लिखूं।
मैं स्त्रीत्व को भला क्या लिखूं।।✍✍✍
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