सदा सादगी मांगी, कुछ सुंदर नही मांगा।
एक प्रेममय घर माँगा कोई शहर नही मांगा।।
माँ , दोस्त, और महादेव के सिवा कोई मोह नहीं।
इनके सिवा कहीं दिल लगे वो पहर नही मांगा।।
ये धन अतुलनीय इनसे बढ़कर क्या माँगे।
कोई और भा जाए हृदय, ऐसा नजर नही मांगा।।
ये मुस्कराते हैं तो लहलहाते हैं दिल के फसले-चमन।
माँ भारती के सिवा कोई धरा-अम्बर नही मांगा।।
मेरा अस्तित्व है जो तनिक, अब वही पर्याप्त है।
मैंने कोई यश कीर्ति या जग धरोहर नही मांगा।।
जो जानते हैं उन्हें पता है मूल्य मेरे वचनों का।
जो अंधेरे हैं उनसे प्रमाण प्रियवर नहीं माँगा।।
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