मेरे भाव, मेरे लेख | Mere Bhav , Mere Lekh

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 मेरे भाव, मेरे लेख

दिन प्रतिदिन बढ़ रही
रिश्तों में प्रगाढ़ता।
सुमधुर ,स्नेहिल और सौंदर्यता।।
मन मन्दिर में ज्योति प्रज्वलित
सम्मान और सद्भाव की।
हृदय भा गया तेरा सुंदर मन
और जीवन की सादगी।।

तेरा साथ रहे सदा
मेरे शेष जीवन के पड़ाव में।
कर्ण सी तेरी मित्रता है
लहराउँगा इस भाव में।।

जो नहीं आता मुझे,
हर वो बात सीखा देना तुम।
सँवार लूंगा तेरी मित्रता में निज को,
मेरे हर स्थिति में साथ देना तुम।

स्वयं को तुम्हें समर्पित करूँगा,
स्नेह से अपनाना तुम।
भूल करूँ नादानी में यदि,
अधिकार से समझाना तुम।।

कभी जो अपने स्मृतियों पर,
महत्वकांक्षाओं की धूल पड़े।
जीवन के कठिन परस्थितियों में ,
आशंकाओं की शूल पड़े।।

मित्र समझ कर अपना,
स्नेह का फूंक मारना तुम।
अपने सद्गुणों के प्रभाव से,
मेरा दोष सारा मिटाना तुम।।

बस यही आशा लिए
दिन रात कलम विचरित हो रहा।
तुम्हारी मित्रता के गर्व में
अनगिनत लेख स्वरचित हो रहा।।

तुम विश्वास हो मेरी प्रकृति सी
तुम ऊर्जा मेरे हर कृति की
मेरे भाव पुष्प अर्पित तुम्हें।
मेरे लेख शब्द समर्पित तुम्हें।।

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