एक नज़्म | ग़ज़ल

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 एक_नज्म


वो रब वो ईश्वर मुझमें रहते जहाँ हैं।
मेरे दोस्त तुम्हें मैंने रखा वहाँ है।।

दरवाज़े खुले हैं दिल के चारों तरफ़ से।
ताले कोई हम लगाए कहाँ हैं।।

ताउम्र दोस्ती का वादा है तुमसे।
रिश्ता है पुराना पर जुनून नया है।।

कई साल से मैंने ढूँढ़ा हैं जिसको।
तेरे रूप में मैंने पाया यहाँ है।।

तुम मिलोगे कभी तो बताएँगे हम।
ज़ख्म कौन सा है और दर्द कहाँ है।।

मिलकर तुम्हीं से समेटे हैं ख़ुद को।
वरना ख़्वाहिशें सारी धुआं ही धुआँ है।।

मिलते हैं राह में दोस्त कई सारे।
पर तुम जैसा किसी को अपनाएं कहाँ हैं।।

-गुरु

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