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गजल
तुम्हारी नज़र में इक नज़र देखना है।
है कितना क़ातिल ये असर देखना है।।
बैठा हूँ छत पे लगाये निगाह गलियों में।
गुजरे सामने से, तो रहगुज़र देखना है।।
मुझे अपना कह दे या मेरी हो जा।
है कितनी अपनी क़दर देखना है।।
सुबह सूर्य लाली और धूप ठंडी वाली।
हर मौसम तेरे में शामों शहर देखना है।।
मैं तेरे ही रंग में, रंग जाऊँ "गुरु" अब।
न हो मुझ पर कोई और असर देखना है।।
न चैन हो न सुकूँ हो, न आराम हो कहीं।
तिरे ख़ातिर दिल को यूँ बेसबर देखना है।।
एक बार दे जाने ,रूहे आशियाँ में।
कि मुझे तेरे दिल का नगर देखना है।।
सब कहते हैं मुश्किल, है सफ़र इश्क़ का।
तेरे साथ मुझको, वो सफ़र देखना है।।
न कटता वक़्त तुम बिन , न रातें गुज़रती।
है आँखों की ख़्वाहिश हर पहर देखना है।।
लग जा गले से, ज़रा दौड़कर मेरे।
डूबके अब चाहते, समंदर देखना है।।।।
तुम सप्त रँगी , इंद्र धनुष हो जैसे।
तेरे सिवा क्या, इधर-उधर देखना है।।
मुझे पढ़कर तुम, क्या सोचोगे आख़िर।
देके इश्तिहारे ख़बर देखना है।।
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